...

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इंतज़ार

आज की चर्चा कर रहा हूँ
एक ऐसे नारी पात्र की ,
जिसके पास, नयन मेरी जाकर
अटक गयी है आस की |
बाल लगते झरने समान
मुग्द करते नेत्र और काजल,
चाँद रूपी चेहरे की हॅसी
कर गयी मुझको पागल |

करती,जितनी नफरत प्यार शब्द से
उतना ही उसे अपनाया ,
जब -जब नींद टूट जाती मेरी
तब-तब , परी बन बैठ सुलाया |
उसी रात की माया ने
मस्तिष्क को यूँ भटकाया कि ,
फिर से झलक देखने को
मेरे दिल ने मन को भरकाया|
इसी तरह से लिखकर "पद्य"
करता रहूँगा, प्यार का इज़हार ,
चाहे क्यों ना कट जाये सातों जन्म
राह तकते तेरा इंतज़ार |


© अविनाश कुमार साह
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