...

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वह पसंद है मुझे इसीलिए
वह पसंद है मुझे इसीलिए
उसकी गुस्से को मलाल देता हूं
कुछ भी कह देती है
हंस कर टाल देता हूं
वह पसंद है मुझे,,,,

करती हूं मुहब्बत उससे
सिक्के की तरह उछाल देता हूं
जब डांटने लगती है तो
उसकी हाथ को चुम उसे जमी पर उतार देता हूं
वह पसंद है मुझे,,,,

खामोश रहता हूं ना कुछ कहता हूं
उसकी तरफदारी कर उसे और फुलाता हूं
क्या करूं जीवन संगिनी बनाना है उसे
इसीलिए उसकी हर कतरे-कतरे पर रूमाल रखता हूं
वह पसंद है मुझे,,,,

वह भाती ही इतना है कि क्या कहुं
उसे सांसों में बसाए संसार घूमता हूं
जिंदगी मुझे कुछ और नहीं चाहिए
उसे अपना संसार कहता हूं
वह पसंद है मुझे,,,,

फ्लक झपकते ही उसकी हर मांगे
तत्काल पूरा कर देता हूं
क्या कहूं उसकी हर बात मान
लगता है उसके लिए मैं टॉमी बन जाता हूं
वह पसंद है मुझे,,,,

संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar