आख़री मुलाक़ात
मैं
तुम्हारी दुकान पर आई थी,
सरका पल्लू ठीक किया,
थोड़ी सी घबराई थीं।
अब तुम नामेहरम हो,
खुद को समझाया मैंने,
और फिर बेफिक्र होकर
कुछ फरमाया मैंने।
सुनों
ये बिंदी के पत्ते कि क्या क़ीमत बताई,
उसकी घबराई आँखे थीं जो कुछ डबडबाई,
लो तुम रख लो इसे,
न करो अब मोल भाव इसका।
अब नाम का रिश्ता नहीं,
पर कभी लगाव तो था।
बेमतलब सी बातें न करों,
यहाँ मेरा भी कुछ मान हैं।
अब वो मोहब्बत नहीं तुमसे
पर मेरे...
तुम्हारी दुकान पर आई थी,
सरका पल्लू ठीक किया,
थोड़ी सी घबराई थीं।
अब तुम नामेहरम हो,
खुद को समझाया मैंने,
और फिर बेफिक्र होकर
कुछ फरमाया मैंने।
सुनों
ये बिंदी के पत्ते कि क्या क़ीमत बताई,
उसकी घबराई आँखे थीं जो कुछ डबडबाई,
लो तुम रख लो इसे,
न करो अब मोल भाव इसका।
अब नाम का रिश्ता नहीं,
पर कभी लगाव तो था।
बेमतलब सी बातें न करों,
यहाँ मेरा भी कुछ मान हैं।
अब वो मोहब्बत नहीं तुमसे
पर मेरे...