...

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कुछ श्वेतवर्ण सा..
वह श्वेतवर्ण सा दिव्य वस्त्र,

कर गया विदिर्णित बिना शस्त्र,

इन दृष्टिविहीन से नेत्रों को
कुछ पल में किया जब अस्त पस्त,

इन बेढंगी बातों का क्या
जिन्हें सुन के हुआ कोई त्रस्त त्रस्त,

उस अंधकार से केशोंं में
मैं नेत्रविहीन सा फंसता गया,

उन चंचल नेत्र की चंचलता में
किसी द्वेष दृष्टि सा धंसता गया,

ना चाह है किसी खेवैये की
ना लोभ है किसी को पाने की

मैं डूब जाऊं इन रस्मों में
जहां डर हो उन्हें निभाने की।



© stupid_me