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गज़ल
अब तो मौसम भी बेअसर सा है,
बिन तेरे दिल ये बेखबर सा है।
डूब जाता है दिल कहीं इनमें,
तेरी आंखों में इक भंवर सा है।
भूल जाना उसे कहां मुमकिन,
जो बसा दिल में जां जिगर सा है।
दिल में इंसानियत नहीं है गर,
आदमी फिर तो जानवर सा है।
हाल ऐसा है अब सियासत का,
दिल में सबके ही एक डर सा है।
हाल पूछो न जिंदगी का अब,
हर कदम पर अगर मगर सा है।
© शैलशायरी
बिन तेरे दिल ये बेखबर सा है।
डूब जाता है दिल कहीं इनमें,
तेरी आंखों में इक भंवर सा है।
भूल जाना उसे कहां मुमकिन,
जो बसा दिल में जां जिगर सा है।
दिल में इंसानियत नहीं है गर,
आदमी फिर तो जानवर सा है।
हाल ऐसा है अब सियासत का,
दिल में सबके ही एक डर सा है।
हाल पूछो न जिंदगी का अब,
हर कदम पर अगर मगर सा है।
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