सफ़र की मिट्टी में जीवन का बीज
#हवामेंपत्ती
सांझ तनिक ढेर हो गई थी,
उसको गिरे गिरे,
एक पहर सो चुकी थी,
था वो गहरे कत्थई रंगो में लिपटा,
अर्क के छींटे लिए,
बड़ा सूत मुलायम,
गीली मिट्टी के गुलगुले जैसा,
जाने किस पेड़ से सोहर झुका पड़ा था वसुंधरा पर,
शब ढली और भोर हो चली,
हवा उसके संग नेमत चली,
वृक्ष से गिरा वो पत्ता था,
मौसम की आंधी में बहता रहा,
कभी पूरब,
कभी दक्षिण,
न जाने वो किस दिशा को ढूंढ़ रहा,
हवा उसे कभी ऊपर उठाए,
कभी नीचे गिराए,
रास्ते में वो धूल से मिला,
बयार उसको कुछ खास रास ना आई,
पहुँचा फिर वो एक बंजर ज़मीन पर, ...
सांझ तनिक ढेर हो गई थी,
उसको गिरे गिरे,
एक पहर सो चुकी थी,
था वो गहरे कत्थई रंगो में लिपटा,
अर्क के छींटे लिए,
बड़ा सूत मुलायम,
गीली मिट्टी के गुलगुले जैसा,
जाने किस पेड़ से सोहर झुका पड़ा था वसुंधरा पर,
शब ढली और भोर हो चली,
हवा उसके संग नेमत चली,
वृक्ष से गिरा वो पत्ता था,
मौसम की आंधी में बहता रहा,
कभी पूरब,
कभी दक्षिण,
न जाने वो किस दिशा को ढूंढ़ रहा,
हवा उसे कभी ऊपर उठाए,
कभी नीचे गिराए,
रास्ते में वो धूल से मिला,
बयार उसको कुछ खास रास ना आई,
पहुँचा फिर वो एक बंजर ज़मीन पर, ...