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प्रकृति 🌸
प्रकृति को ख़रीद ने चला हे इंसान,
जिसकी गोद में बड़ा हुवा उसीका भूल के अहेसान,
.
कुदरत की दी गई चिज़ो पर हक जमाने चला हे,
विपता के लिए फिर तैयार रहो जो होगा घमासान
.
कोई चाँद पे ख़रीद रहा हे ज़मी तो कोई,
हरियाली को मिटा के बना रहे समशान
.
प्रकृति से जन जीवन हे उनका जतन करने कि बजाय ,
उनको बेरंग कर रहे सीने मे दिल हे या पाषान ।
✍️🖤🌼 Pragati
© All Rights Reserved
जिसकी गोद में बड़ा हुवा उसीका भूल के अहेसान,
.
कुदरत की दी गई चिज़ो पर हक जमाने चला हे,
विपता के लिए फिर तैयार रहो जो होगा घमासान
.
कोई चाँद पे ख़रीद रहा हे ज़मी तो कोई,
हरियाली को मिटा के बना रहे समशान
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प्रकृति से जन जीवन हे उनका जतन करने कि बजाय ,
उनको बेरंग कर रहे सीने मे दिल हे या पाषान ।
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