...

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होंठों पर सजाना चाहती हूँ
अपने होंठों पर सजाना चाहती हूँ,
आ तुझे मैं गुन गुनाना चाहती हूँ,
कोई आँसू तेरे दामन पर गिरा कर,
बूँद को मोती बनाना चाहती हूँ,
थक गयी मैं करते करते याद तुझको,
अब तुझे मैं याद आना चाहती हूँ,
जो बना वायस मेरी नाकामियों का,
मैं उसी के काम आना चाहती हूँ,
छा रहा है सारी वस्ती पे अँधेरा,
रौशनी को घर जलाना चाहती हूँ,
फूल से पैकर तो निकले बे-मुरब्बत,
मैं पत्थरों को आज़माना चाहती हूँ,
रह गयी थी कुछ कमी रुसवायिओं में,
फिर उस दर पे जाना चाहती हूँ,
आखिरी हिचकी तेरे जाने पे आये,
मौत भी मैं शायराना चाहती हूँ ।


© Untold By Cma 🖤