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दूर है।
#writco #pome #writcopome
#दूर
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
ज्ञान दर्पण मे अपने को झाँक रहा कोई।
कोई अपनों से दूर गरौं को सपना बना रहा है,
कोई बिखरे हुए सपनों को समेट रहा है,
कोई सरिफ समंदर को कोस रहा है,
कोई मुसाफिर अपना घर बना रहा है।
अनजान सारे बात करने लगे है,
हाथ मे हाथ धरे पास आने लगे है,
हँसते हँसते दर्द छुपा रहा है कोई,
फिरसे नए की आस लगाये बैठ रहा है कोई
© Deba Rath
#दूर
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
ज्ञान दर्पण मे अपने को झाँक रहा कोई।
कोई अपनों से दूर गरौं को सपना बना रहा है,
कोई बिखरे हुए सपनों को समेट रहा है,
कोई सरिफ समंदर को कोस रहा है,
कोई मुसाफिर अपना घर बना रहा है।
अनजान सारे बात करने लगे है,
हाथ मे हाथ धरे पास आने लगे है,
हँसते हँसते दर्द छुपा रहा है कोई,
फिरसे नए की आस लगाये बैठ रहा है कोई
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