एक औरत हूँ मैं ... बताओ ना क्यूँ गुनाहगार कहलाती हूँ मैं!
है गर्व मुझे एक औरत हूँ मैं !
ना कोई रंज मुझे क्यों औरत हूँ मैं !
विधाता की श्रेष्ठ सृष्टि ,
नव जीवनदायिनी हूँ मैं !
क़लमकार की कल्पना में ,
चित्रकार के रंगों में हूँ मैं !
महकती बोकुल की ख़ुशबू में ,
चाँद की चाँदनी में हूँ मैं !
सूरज की पहली किरण में ,
सुबह की चाय में हूँ मैं !
आंगन की तुलसी में ,
पूजा घर के दीये में हूँ मैं !
खनकते बरतनों में ,
रसोई के कोने कोने में हूँ मैं !
छत पर सूखे कपड़ों में ,
धूप में रखें अचार के मसालें में हूँ मैं !
तुम्हारे रूमाल में बसी महक में ,
तुम्हारी कमीज़ के बटन में हूँ मैं !
तुम्हारे...
ना कोई रंज मुझे क्यों औरत हूँ मैं !
विधाता की श्रेष्ठ सृष्टि ,
नव जीवनदायिनी हूँ मैं !
क़लमकार की कल्पना में ,
चित्रकार के रंगों में हूँ मैं !
महकती बोकुल की ख़ुशबू में ,
चाँद की चाँदनी में हूँ मैं !
सूरज की पहली किरण में ,
सुबह की चाय में हूँ मैं !
आंगन की तुलसी में ,
पूजा घर के दीये में हूँ मैं !
खनकते बरतनों में ,
रसोई के कोने कोने में हूँ मैं !
छत पर सूखे कपड़ों में ,
धूप में रखें अचार के मसालें में हूँ मैं !
तुम्हारे रूमाल में बसी महक में ,
तुम्हारी कमीज़ के बटन में हूँ मैं !
तुम्हारे...