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एक औरत हूँ मैं ... बताओ ना क्यूँ गुनाहगार कहलाती हूँ मैं!
है गर्व मुझे एक औरत हूँ मैं !
ना कोई रंज मुझे क्यों औरत हूँ मैं !
विधाता की श्रेष्ठ सृष्टि ,
नव जीवनदायिनी हूँ मैं !

क़लमकार की कल्पना में ,
चित्रकार के रंगों में हूँ मैं !
महकती बोकुल की ख़ुशबू में ,
चाँद की चाँदनी में हूँ मैं !

सूरज की पहली किरण में ,
सुबह की चाय में हूँ मैं !
आंगन की तुलसी में ,
पूजा घर के दीये में हूँ मैं !

खनकते बरतनों में ,
रसोई के कोने कोने में हूँ मैं !
छत पर सूखे कपड़ों में ,
धूप में रखें अचार के मसालें में हूँ मैं !

तुम्हारे रूमाल में बसी महक में ,
तुम्हारी कमीज़ के बटन में हूँ मैं !
तुम्हारे दोस्तों के घर पार्टी में,
अपने घर, दावत की मेज़बानी में हूँ मैं !

माँ जी की दवाईयों में ,
बाबूजी के अख़बार के पन्नों में हूँ मैं !
देवरजी को डांट से बचाने में,
ननद दुलारी के श्रृंगार में हूँ मैं !

बच्चों की किलकारियों में ,
उनकी पढ़ाई लिखाई में हूँ मैं !
तुम जब शाम को थके हुए घर आओ ,
होंठों पर मुस्कान लिए घर के दरवाजे पर हूँ मैं !

सुनहरी रातों को और सुनहरी ,
तुम्हारे ख़्वाबों को और रंगीन बनाती हूँ मैं !
इन सबके बीच अपनी पहचान के साथ,
अपनी ख़ुशी तलाशने रोज़ निकलती हूँ मैं !

सबकी ज़रूरतें पूरी करते करते ,
आज अपनी ख़्वाहिशें , ज़रूरतें भुल गयी हूँ मैं !
मेरी माँ की तबीयत ठीक नही साल भर से ,
पर बताओ ना ... वहाँ कहाँ हूँ मैं ?

कतरा कतरा बह गयी यह ज़िन्दगी ,
पर इस घर में आज भी पराये घर की बेटी हूँ मैं !
कभी ग़र कुछ पल अपने लिए जी लिया ,
तो बताओ ना... क्यों गुनाहगार कहलाती हूँ मैं ??