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साड़ी से जुड़े मेरे अहसास..........
बचपन की मस्ती में दुपट्टे से साड़ी लपेटना
माँ का अभिनय कर दर्पण में खुद को निहारना
पहली बार तब आयी आंखों में चंचल सी चमक,
माँ की कनखियों से देखी थी तब मेरी झलक
इस उम्र में साड़ी ने दिया ..........
कोमल पंखों के निकलने का अहसास

कालेज का वो आलम, वो मस्ती भरे दिन
मस्त अल्हड़पन, चहकते, उन्मुक्त से थे सपने,
फेयरवेल की उत्सुकता,उत्कंठा से तैयारी
उनके सामने बनठन इठलाने की तैयारी

उनके पसंद की आसमानी लहराती साड़ी
लपेट कर मानो उनकी हुई दिल की रानी
उनको देखा सूट बूट में, खुद को साड़ी में
बुने गए फिर आंखों में भविष्य के सपने
इस उम्र में साड़ी ने दिया
मनमोहक सपनो की उड़ान अहसास .......

वो तुझ से पहली मुलाकात की बात
इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर मिलने की बात
आग्रह तेरा आना तुम उस काली साड़ी में
पायल की रुनझुन मधुर संगीत के साथ
फिर वो तुझ से मिलाना, आँखों से आँखों का मिलना
उस पल ,काली साड़ी ने दिया
तेरी प्रेयसी होने का अहसास ..........

मेरी लाल साड़ी का गठबंधन, तेरे पीले गमछे से
बंधे सप्तपदी के वचनों और सात अग्नि के फेरे से
हुए जन्म जन्मांतर के, अटल ध्रुवतारा सा अब ये बंधन
उस लाल साड़ी ने दिया
अर्धांगनी होने का अहसास.............

आगे के अनुभव क्रमशः ......... 😊

© ऋत्विजा