...

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"जब जब बात तेरी आबरु की आई "
# मणिपुर की पीढ़ा"

जाने कितने ही किस्से गढ़ दिए गए
तेरे रूप, यौवन और श्रृंगार पर

घोंट कर तेरी इच्छाओं का गला
दफना दिया गया तुझे
संस्कारों के नाम पर


भूली बिसरी पड़ी रही जब
सदियों तक तू खुद को

क्यों ना आया तब
ख्याल तेरा
किसी सज्जन के मन को

खुल कर सांस लेने की
ज़रा सी जुर्रत क्या हुई तेरी

सांप ही सूंघ गया
समाज के ठेकेदारों के अहम को

जब तुम खुद ही उठना ,चलना
और संभलना सीखोगी
इतिहास तभी दोहरावोगी

आंचल को...