...

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अनजान शहर
#खोईशहरकीशांति

मैं यही हूँ सब वही हैं, बस नज़रिए में बदलाव हैं
अब रही वो बच्ची नही हूं, जिसके सुकून से दिन और रात हैं

अब तक अपना घर था मेरा अपना ही था एक जहान...
लेकिन अब ये छोटा लगता हैं, इस सोच को नही जचता हैं

अब निकली जो इस मकान से तो शहर ये बैगाना हैं, तलाश में हूँ खुदकी लेकिन सब यहां अनजाना हैं

यहां अच्छाई में बुराई हैं, समझ में गहराई हैं... और अल्हड़-सी मैं अकल की बात तो मम्मी ने आज तक नही सिकाई हैं

लेकिन अब दिमाग लगाना है, इस शहर में खुदको आज़माना हैं

गिरना हैं सम्भलना हैं, खो कर ख़ुदको पाना हैं
डर नही है मुझे हार-जीत का, क्यूंकि मेरा अपना भी एक ठिकाना हैं

ठक भी गई जो एक बार को, हिम्मत और दुआओं से भरा, मेरे लिए मेरी मां का खज़ाना हैं|

© Kanika

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