बुलंद हौसले
इन जंजीरों को तोड़कर,
रुख हवा का मोड़कर,
चल रहे हैं देखो हम,
कदम से कदम मिलाकर;
डर नहीं किसी तूफ़ान का,
ना ही आंधी बरसात का,
ठंढ़ क्या डराएगी हमें,
उसे है डर हमारे हौसले का,
हवाओं को, जंजीरों को,
आँधियों, तूफ़ानों को,
ठिठुराती ठंढ़, जलाती धूप को,
यह सोचना है ज़रूरी,
कि हम किस देश में हैं जन्में ,
और क्या-क्या हैं अब तक सहे,
कितनी है हमारी सहन शक्ति,
तभी वे सोचें आगे बढ़ने की।
__अर्चना भारती
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