...

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बयार
प्रेम ऋतू ले आ गयी, मादक मृदुल बयार
प्रेम प्रकट परयास को, प्रेमी पुनः तैयार।

मात-पिता से झींटकर, मित्र से माँग उधार
इक-दूजे को दे रहे, निसदिन नव उपहार।

बदल-बदल कर भेँट दें, वार 'वार' प्रतिवार
सप्तदिवसीय प्रमाद का, साप्ताहिक त्यौहार।

ऋतू सा परिवर्तित रहे, रहे न सदाबहार
यह पखवारा प्रेम का, अगले में ही रार।

काँचे मन की प्रीत का, सही नहीं आधार
काल करै करवट तनिक, ढह जाये दीवार।

प्रेम परम पावन रहे, कहीँ नहीं प्रतिकार
सोच समझकर कीजिये, प्रीत प्रेम व्यवहार।।

-भूषण