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सावन का अलबेला मौसम
अंबर पर छाईं काली घटा, आया सावन का अलबेला मौसम है,
तुझसे मिलने की तमन्ना ले रही अँगड़ाई छोड़कर सारी शरम है।
धरती की प्यास बुझा रहा अंबर रिमझिम बरस-बरस कर,
मेरा दिल है प्यार का प्यासा, उसकी प्यास बुझाना तेरा धरम है।
मन में प्यार की अगन लगा रहा ये सावन का मौसम है,
जो इस अगन को बुझा दे उस सरिता का तेरे मन से उदगम है।
मैं तड़प रहा हूँ, तेरी याद में तिलतिल जल रहा हूँ ,
तुझको ख़बर नहीं पर इसकी, कैसी तू बेरहम है।
आ मेरी बाँहों में आ जा, आकर मेरे पहलू में समा जा,
ये मिलन की ऋतु है, इसमें ही तो होता प्रेमियों का संगम है।
हरियाली ही हरियाली छाई है चहुँ ओर वसुंधरा पर,
सूखा है मगर मेरे मन का आँगन, ये तेरा ज़ुल्मों सितम है।
© दुर्गाकुमार मिश्रा
तुझसे मिलने की तमन्ना ले रही अँगड़ाई छोड़कर सारी शरम है।
धरती की प्यास बुझा रहा अंबर रिमझिम बरस-बरस कर,
मेरा दिल है प्यार का प्यासा, उसकी प्यास बुझाना तेरा धरम है।
मन में प्यार की अगन लगा रहा ये सावन का मौसम है,
जो इस अगन को बुझा दे उस सरिता का तेरे मन से उदगम है।
मैं तड़प रहा हूँ, तेरी याद में तिलतिल जल रहा हूँ ,
तुझको ख़बर नहीं पर इसकी, कैसी तू बेरहम है।
आ मेरी बाँहों में आ जा, आकर मेरे पहलू में समा जा,
ये मिलन की ऋतु है, इसमें ही तो होता प्रेमियों का संगम है।
हरियाली ही हरियाली छाई है चहुँ ओर वसुंधरा पर,
सूखा है मगर मेरे मन का आँगन, ये तेरा ज़ुल्मों सितम है।
© दुर्गाकुमार मिश्रा
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