...

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मेरी स्याह आंखों से पूछो कैसी कटती है मेरी स्याह राते..
कौन कहता है..अपने हालात से बेख़बर हूँ मैं,
मेरी आंखों से पूछो कि "कैसी कटती है मेरी स्याह रातें..?"
लेकिन जैसे ही सुबह की लालिमा देखती हूँ...
तब खुद को हौसला देते हुए बार-बार यही कहती हूँ कि...
"सवेरे का सूरज है तुम्हारे लिए बुझते दिये को न तुम याद रखना..."