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पितृ पक्ष....🙏🌿🌸🌻
जिंदा रहते जो दो घूंट पानी ना दे सके,
वो भोर होते पुरुखों का तर्पण करते हैं,
चढ़ाते हैं फूल अक्षत,आशीर्वाद मांगते,
और अपने स्वार्थ को समर्पण कहते हैं।

जो तरसाते रहे मां बाप को दो टूक रोटी को,
वो स्वादिष्ट पकवान बना पण्डित खिलाते हैं,
जो पितरों का आदर,सम्मान किए नहीं कभी,
वो बैठ कुशा के आसन पे पितृ पक्ष मनाते हैं।

कोई थाम ले आकर कंपकपाते हाथ उनके,
बन जाए कोई उनके बुढ़ापे की लाठी,
कोने में पड़े पड़े निहारते रहते हैं देहरी
यही देखते-देखते आँखें हो जाती है धुंधली।

इसी आस में उनके प्राण निकल गए
कि काश दो पल कोई पास आकर बैठे,
कहे अपने मन की कभी,मेरा हाल पूछे,
ढलती शाम संग रात हो जाती है जैसे
झुर्रियां पड़...