बचपन और राम लीला
#स्मृति_कविता
स्मृतिया हैं जहन में आज भी
नवरात्रि के नव रातों की
सर्द नरम सहलाती सी कोमल हवाए
निकलते ही घरों से अंधेरे भी हमें डराये
पकड कर हाथ इक दूजे का झुंड में चलते थे जब
जोश नई जग जाए...
स्मृतिया हैं जहन में आज भी
नवरात्रि के नव रातों की
सर्द नरम सहलाती सी कोमल हवाए
निकलते ही घरों से अंधेरे भी हमें डराये
पकड कर हाथ इक दूजे का झुंड में चलते थे जब
जोश नई जग जाए...