...

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#जिंदगी #सातत्य
खूद से किया वादा स्वयं ही तोडोगे क्या ?
ऐसे फिर मंजिल कभी पहूँच पाओगे क्या ?

अपने मन मस्तिष्क पर भी संशय कर पाओगे क्या ?
अपने दिल के अरमानों का गला कभी घोंट पाओगे क्या ?

सोच सोचकर हमेशा दूख-दर्द से कराहते रहोगे क्या ?
बीते कल को फिर से जीवन में लौटा पाओगे क्या ?

अपनों से किये प्यारभरे वादे कैसे तोड पाओगे ?
अपनों को क्या मुंह दिखाने योग्य ठहर पाओगे ?

सूनो, गीता ज्ञान याद थोड़ा कर लो,
अपने आप को थोड़ा सँभाल लो !!

कर्म करने का अबाधित अधिकार तूम्हें !
फल प्राप्ति अनिश्चित पर अवश्यंभावी है !!

नीति, सत्य, कर्तव्य निष्ठा से
नेकी कर दरिया में डाल.!!

© Bharat Tadvi