...

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बढ़ती उम्र का सच
बढ़ रही उम्र,,,
दिन ब दिन उम्र हमारी बढ़ रही,,,
पर अरमान वहीं हैं रुके हुए ।
दिन रात खटकते आंखों में,,,
जैसे शोर मचाते पत्ते सूखे हुए।

सुबह से लेकर शाम तक,,,
हर शख्स भागता रहता है।
जितना मर्जी मिल जाये जिंदगी में
फिर भी कुछ न कुछ काश‌ में रह जाता हैं।

बचपन तो बीत गया भोलेपन में,
फिर जवानी आपने रंग दिखाती हैं
कोई समय के साथ निखर जाता,,
किसी के उपर प्यार का रंग चढ़ाती हैं।

उम्र तो पल पल बढ़ रही,,
पर सांसें घटती जाती हैं।
एक दिन थम जाता सिलसिला बढ़ने का,,
जिस दिन सांसें की डोरी ही रुक जाती हैं

बढ़ती उम्र के साथ साथ,,
सच रिश्तों का सामने आता हैं।
किसी के लिए बुढ़ापा भी अनमोल हैं,,
किसी के लिए अभिशाप बन जाता हैं।

✍️✍️✍️✍️ परम 🌹💚🌹
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