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दुखद मन से
कुछ स्त्रियां स्वयं से विलग कर रख देती है नियम,संयम,और सम्मान
इन सब को मसलते हुए
उन सब को बना कर हथियार
एक पुरुष के विरुद्ध
रचती हैं झूठा स्वांग
क्या यह अनुचित नहीं है
कर देती हैं भ्रमित
अपनी मासूमियत से
अश्रुओं से, उग्र हो जाती हैं
जानकर सीधा पुरुष को
भरपूर प्रयास किया जाता है
उस पुरुष को झुठलाया जा सके
स्वयं पर नियंत्रण खो
हो जाती है हावी
उस पुरुष पर जो
चीख कर व्यथित मन से
बस मौन चीखता रह जाता है
दब के उस बढ़ती भीड़ में
वो स्वयं को सत्य सिद्ध करने की
कोशिश में पार कर जाती हैं हर सीमा
अपने सम्मान को कुचलते हुए
अपनी अस्मिता को दुर्भाग्यवश
शामिल करते हुए
वाणी को उग्र कर अपशब्द कहते हुए
बात न बनने पर शायद कभी
हाथ पैर भी चलाने से नहीं चूकती
बना लेती है सभी को ताक पर रख कर
स्वयं को ही ब्रम्हास्त्र
हर ओर से बस चक्रव्यूह सा बना देती है
जिसमें फंस गया बेचारा पुरूष
उसकी मात्र इतनी गलती थी
की उसने बदले में नहीं छोड़ा हाथ
नहीं कहे अपशब्द
क्योंकि वह हथकंडे तो उसने अपना ही लिए थे
निर्दोष पुरुष को दोषी साबित करने की कोशिश में
और सिखा रही थी मर्यादा में रहना


महिला हो इसका तात्पर्य यह नहीं की आप कुछ भी कर सकती हैं नियम सभी पर समान लागू होते हैं। देख कर, सुन कर बुरा लगा की एक पुलिस महिला शायद अपनी नौकरी की,अपने महिला होने का लाभ और पुलिस नौकरी की धौंस जमाते हुए किस तरह प्रताड़ित किया।
किसी को भी बेवजह परेशान नहीं करना चाहिए।
स्त्री हो इसका मतलब यह नहीं की कुछ भी कर सकती हो।
दुखद मन से .….


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