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कहा से लाऊ वो साहस
जो सब कुछ भूलकर सुकून,
से जी लूं मैं,
जब वो लम्हे सामने आते हैं
चाहकर भी हम खुश नहीं हो पाते हैं
जो बीता था मंजर मेरे साथ
रह रह के रुलाता है मुझे
मुस्कुरा लेती हूं आंखों में आसूं लिए
अकेले ही लड़ी थी मैंने वो जंग
वो अपनों के ही दिए हुए थे ज़ख्म ।।
से जी लूं मैं,
जब वो लम्हे सामने आते हैं
चाहकर भी हम खुश नहीं हो पाते हैं
जो बीता था मंजर मेरे साथ
रह रह के रुलाता है मुझे
मुस्कुरा लेती हूं आंखों में आसूं लिए
अकेले ही लड़ी थी मैंने वो जंग
वो अपनों के ही दिए हुए थे ज़ख्म ।।
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