...

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सुनो,आओ ना.....
सुनो,
आज जब मिलने आओगी तो वही
गहरे नीले रंग का सूट, झुमके और
वो पायल पहन कर आना
जो पहली शॉपिंग पर हमने साथ खरीदी थी
मैं भी आज तुम्हारी पसंद की वही
सफ़ेद शर्ट पहनकर आ रहा हूँ
जो तुमने मुझे मेरे जन्मदिन पर गिफ़्ट की थी
जाने आज फिर क्यूँ उन्हीं
लम्हों को फिर जीने का मन कर रहा है...!
जबसे प्रेमी-प्रेमिका से पति-पत्नी हुए हैं
मैंने अपनी प्रेमिका और तुमने अपना प्रेमी
कहीं खो दिया है
सुनो ना बुला रही है वो गुलमोहर की छांव
वो सूखी टहनियों, पत्तियों से बनाया हमारा गांव
वो चाय की टपरी, वो 50 पैसे की मठरी,
वो अल्हड़पन, वो अठखेलियाँ,
सुनो वो बेफ़िक्र ज़िन्दगी
फिर बुला रही है
आओ ना इस बढ़ती उम्र और जिम्मदारियों के
बीच से थोड़ी सी ज़िन्दगी चुरा लाते हैं।
सुनो तो,
आओ ना.....


© तिरस्कृत


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