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मजबुरी झूठ नहीं मजबूरी है,..✍️
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
हर नंगे बदन पर कपड़ा ज़रुरी हैं,
अरे तुम क्या जानो ग़रीबी को ..
तुम्हारी हर आरज़ु पूरी है,
मजबुरी झूठ नहीं मजबूरी है,
नहीं चहता कोइ गरीब बनना ...
हार किसी को पैसा ज़रूरी है।
© अल्फाज़.शायरी...✍
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
हर नंगे बदन पर कपड़ा ज़रुरी हैं,
अरे तुम क्या जानो ग़रीबी को ..
तुम्हारी हर आरज़ु पूरी है,
मजबुरी झूठ नहीं मजबूरी है,
नहीं चहता कोइ गरीब बनना ...
हार किसी को पैसा ज़रूरी है।
© अल्फाज़.शायरी...✍
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