जो मैं एक किताब होती..
जो मैं एक किताब होती
स्वयं ही स्वयं को पढ़ पाती
क्रुद्ध और विवादित विचारों को
बार बार ना कभी दोहराती
आग उगलते शब्दों को
पंक्ति में आने से रोक पाती
जो मैं एक किताब होती, तो
इतनी सी बात समझ पाती।
आस पास के मूक भाव
सुगंध बन कागज़ पर बिखेर जाती
अधूरी बातों को खालीपन में
गहराई तक का स्पर्श दे जाती
किसी दोष से रिक्त होते लेखक
पाठकों की प्रेरणा बन जाती
जो मैं एक किताब...
स्वयं ही स्वयं को पढ़ पाती
क्रुद्ध और विवादित विचारों को
बार बार ना कभी दोहराती
आग उगलते शब्दों को
पंक्ति में आने से रोक पाती
जो मैं एक किताब होती, तो
इतनी सी बात समझ पाती।
आस पास के मूक भाव
सुगंध बन कागज़ पर बिखेर जाती
अधूरी बातों को खालीपन में
गहराई तक का स्पर्श दे जाती
किसी दोष से रिक्त होते लेखक
पाठकों की प्रेरणा बन जाती
जो मैं एक किताब...