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*** सफर ***
*** कविता ***
*** सफर ***

" अक्सर होतै हैं सफर में ,
कोई‌ तो हमसफ़र मिले ,
ये राहें अब हमनवां है मेरी ,
कोई तो इसका खबर ले ,
गुम हो जाऊंगा इन गुमनाम राहों में ,
कोई हमनवां ऐसा मिले जो पल - पल की खबर ले ,
थक जाते हैं चूर हो इन राहों पे चल के ,
कोई तो हो जो पल - पल की खबर ले ,
सहारा इन रास्तों का ही है ,
गुमनाम सफर का यही साथी होते हैं ,
अक्सर होते हैं सफर में ,
कोई तो हमसफ़र मिले ,
मिलने को मिलते हैं लोग जाने - अनजाने ,
फिर किसी राह फिर किसी मोड़ पे बिछड़ जाते हैं . "

--- रबिन्द्र राम

© Rabindra Ram