ग़ज़ल
१२२ १२२ १२२ १२
कभी पास मेरे भी आओ सनम
ये दूरी ये हिज्राँ मिटाओ सनम
मेरी तिश्नगी यूँ मिटेगी नहीं
लबों से लबों को मिलाओ सनम
तेरी ज़ुल्फ़ में...
कभी पास मेरे भी आओ सनम
ये दूरी ये हिज्राँ मिटाओ सनम
मेरी तिश्नगी यूँ मिटेगी नहीं
लबों से लबों को मिलाओ सनम
तेरी ज़ुल्फ़ में...