...

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स्वर्ग
पल-पल स्वर्ग के सपने सजाए "
जीवन किया नरक समान....
अच्छा इंसान बना फिरे,
कर्मो की,कहां उसे पहचान,,,,!!!

स्वर्ग यही है...नरक यही है "
इस बात से हर पल है अनजान.....
कैसी है काया,,,,इंसान की,
खुदको समझे बड़ा महान,,,,,,!!!

पल-पल जो है, क्रोध दिखाए "
अपनी गलतियों को दिया नकार....
राम-सा उसको सम्मान चाहिए,
जिसने राम का लिया ना कभी नाम,,,,,!!!

जाति-धर्म का है,,शोर मचाए "
इंसानियत का किया ना कोई काम...
अधर्म के पथ पर जो खुद चले,
वही सिखाये धर्म का पाठ,,,,,,,!!!

दूसरों के मुद्दे में खुद आ जाए "
बात-बात पर उठ जाए हाथ.....
खता है किसकी, यह ज्ञात नही,
फिर भी न्यायालधीश बन जाए,,,,!!!

प्रेम की हर पल माला जपता फिरे "
हर किसी पर लुटाए अपनी जान...
चार शब्द भी प्रेम में बर्दास्त नही,
अपने प्रेम को ही पहुंचाए समशान,,,,!!!

नरक के सारे कर्म किये "
और स्वर्ग का चाहिए स्थान .....
लेकिन कर्म ही तेरे साथ जाएंगे,
विधि का है यही विधान,,,,!!!