"खामोशी का शिकार"
बेज़ारी में गुज़र रहे हैं दिन,
या मैं खुद से बेज़ार हूँ,
ख्वाब जो देखे थे कभी,
अब बस उनकी राख का दीदार हूँ,,
कट रही है अब तो बस ये जिंदगी,
मैं आखिरी शाम को बेकरार हूँ,
जिंदगी के सफर में ढूंढा सुकून,
पर अब तो बस खामोशी का शिकार हूँ,,
...
या मैं खुद से बेज़ार हूँ,
ख्वाब जो देखे थे कभी,
अब बस उनकी राख का दीदार हूँ,,
कट रही है अब तो बस ये जिंदगी,
मैं आखिरी शाम को बेकरार हूँ,
जिंदगी के सफर में ढूंढा सुकून,
पर अब तो बस खामोशी का शिकार हूँ,,
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