पग पग में परीक्षा खड़ी हैं
पग पग में परीक्षा खड़ी है,
उम्मीदें हो गयी उम्र से बड़ी है...!
कभी भर जाती है गागर चंद बूँदों में,
कहीं नाव मझधार में खड़ी है...!
पढ़ते है कसीदें जो कभी एहसास के,
आज उनके होंठो में ज़हर चढ़ी है..!
जो कभी मिलते थे दोस्त पुराने बचपन के,
आज सभी की हैसियत चढ़ी है...!
उम्र ये ढल रही है पल दो पल में यूँ,
ना जाने कैसी आई घड़ी है...!
लिखते लिखते हम भी स्याह हो गए,
अब तो श्वेत की आस बड़ी है..!
कभी बरसती थी बून्द जो कोमल,
आज बन कर धार तेज़ खड़ी है...!
मसला ये नहीं ज़िंदगी गुज़र जाने का है,
मसला ये अपने एहसासों की पड़ी है..!
पग पग में परीक्षा खड़ी है,
आज ज़िंदगी से पहले मौत खड़ी है...!
© रोहित शर्मा "Arjun"
उम्मीदें हो गयी उम्र से बड़ी है...!
कभी भर जाती है गागर चंद बूँदों में,
कहीं नाव मझधार में खड़ी है...!
पढ़ते है कसीदें जो कभी एहसास के,
आज उनके होंठो में ज़हर चढ़ी है..!
जो कभी मिलते थे दोस्त पुराने बचपन के,
आज सभी की हैसियत चढ़ी है...!
उम्र ये ढल रही है पल दो पल में यूँ,
ना जाने कैसी आई घड़ी है...!
लिखते लिखते हम भी स्याह हो गए,
अब तो श्वेत की आस बड़ी है..!
कभी बरसती थी बून्द जो कोमल,
आज बन कर धार तेज़ खड़ी है...!
मसला ये नहीं ज़िंदगी गुज़र जाने का है,
मसला ये अपने एहसासों की पड़ी है..!
पग पग में परीक्षा खड़ी है,
आज ज़िंदगी से पहले मौत खड़ी है...!
© रोहित शर्मा "Arjun"