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अधूरी-मोहब्बत
करार पा न सके हम
घड़ी दो घड़ी के लिए,
उम्रभर बस तरसते ही रहे
सीने में समाने को!
उनकी आहटों से ही मेरा
दिल सहम सा जाता था,
जुबां खामोश हो जाती थी
एक खुमार सा छा जाता था!
कई बार इरादा किया लुट जाऊँ मै
मगर उनकी बेरुखी से डर लगता था,
दिल बस धड़कता रहा यहाँ
उनका नाम लेकर रात-भर,
वो तो यादों में रहे पल-पल
मगर वो फिर भी रहे बेखबर!
© BhaskarDwivedi
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