...

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ग़ज़ल
आईने पर आईना रखता था
मैं ख़ुद को इतना सच्चा रखता था

ग़म को अक्सर भूख लगा करती थी
सो मैं अश्कों का खर्चा रखता था

कपड़े तनकर रोने न लग...