...

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हकीकत
"हकीक़त"

मन की शांति भंग हो गई है,
जैसे कलियाँ बेरंग हो गई हैं,
सारी की सारी बलाएँ मेरे संग हो गई हैं,
और ये सब देख के तो जिंदगी भी दंग हो गई है,
ये पृथ्वी नहीं एक मैदान-ए-जंग हो गई है,
कटाक्ष किए जा रहे हैँ, जैसे उड़ती कटी पतंग से गई है,
किस्मत और हकीकत की लड़ाई मेरी..
जैसे शरीर का ही कोई अंग हो गई है।

भागने की इच्छा हो रही है,
ये जिंदगी अब तंग हो गई है,
ये दुःखों, परेशानीयों की तो जैसे उमंग...