...

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बैचैन
कितनी बैचैन है ये आँखें तुझे देखने को,
तरसते मेरी बाहें तुझे आगोश में लेने को।
यह कर्ण तरसते है तेरी आवाज सुनने को,
यह उंगलियां तरसती है तेरा स्पर्श पाने को।
कांधे खोजते है तेरा सहारा बनने को,
सर ढूंढता है तेरा सहारा पाने को।
पैर तरसते है साथ तेरे चलने को,
हाथ तरसते काम तेरे आने को।
पेट भूखा है तेरे हाथों का बना कुछ खाने को,
पीठ तरसती है बोझ तेरा उठाने को।
होठ तरसते है गर्म स्पर्श तेरा पाने को,
नाक तरसती तेरी खुशबू पाने को।
यह दिल संतुष्ट है पाकर प्यार अब तुझ से,
आत्मा निर्मल हुई अब सुनकर तेरे विचारों को।
संवेदनाओं में नया संचार हुआ पाकर तुझ को,
जीवन साकार हुआ अब पाकर तुझ को।
अंदर से रोता,ऊपर से हँसता मेरा मन,
रोम रोम आनन्दित है मेरा अब पाकर तुझ को।
संजीवनी तुम संजीवनी हो मेरे जीवन की,
एक संग जीवन जीने का सौभाग्य मिले हमको।
संजीव बल्लाल १/५/२०२३
© BALLAL S