...

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सत्य
सुनो कि मीत बनना यूँ तो आसान मगर,
हमदर्द बनना उतना ही मुश्किल है,

तुमसे तुमको मांग लूँ प्रियतम यूँ तो,
मगर दुनिया समर्पण का क़ातिल है,

क़दम क़दम पर ख़्वाब सजाते कितने,
क्षणभंगुर मगर ख्वाहिशें यहाँ होती हैं,

नैनों में भरता रहा समंदर सदा मगर,
हृदय दर्द से आह्लादित क्यों होती है?

आना जाना आशा निराशा यही उसूल है,
चोटिल हैं साँसें मगर हमें सब कुबूल है,

चेहरे कितने लेकिन विश्वास मिले न इनमें,
उम्मीद का नाम नहीं, सब उड़ता हुआ धूल है,

हमसफ़र कोई नहीं यहाँ, तेरा बस तू ही,
माधव से करले प्रेम,इसकी सान्निध्य में शक्ति,

आस्था बंद आँखों का खुली आँखों से हारा,
जीता तो बस वही, जिसके दिल में है भक्ति,

ना मीरा ना राधा बन, बनना है तो ज्वाला बन,
तन को चोटिल होने दे, पत्थर कर अपना मन,

एक नाम एक प्राण एक जीवन एक ही जनम,
सब कुछ बांटा जिसने यहाँ, ना बांट पाया गगन,

इस जगत की रीत यही, इश्क़ नहीं पाक अब,
दीवानगी की भेंट चढ़, हर दामन में दाग अब,

बातें बड़ी बड़ी मशहूरियत पाने करते सभी,
दिखती है औकात तभी, समय लेता करवट जब,

स्वार्थ से प्रेरित हर धड़कन, स्वार्थ में सबको ईश्वर दिखे,
जहाँ रूह को कोई मार दे, फ़िर वह आँगन कैसे सजे।
© @Deeva