...

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ग़ज़ल
ये नहीं कहता मुहब्बत हो रही है
मुझ को लेकिन तेरी आदत हो रही है

तेरे दरियाओं पे ला'नत हो रही है
दश्त में प्यासों की इज़्ज़त हो रही है

ख़ूबसूरत लोग मारे जा रहे हैं
दुनिया कितनी बे-मुरव्वत हो रही है

दिन ब दिन मैं शे'र अच्छे कह रहा हूँ
दिन ब दिन तू ख़ूबसूरत हो रही है

रंग भी अब तेरे मेरे हो गए हैं
फूलों पर जम कर सियासत हो रही है

लब उदासी के सबब सूखे हुए हैं
मुस्कराने में अज़ीयत हो रही है

© Rehan Mirza

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