...

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शुकराना
दिल-ए-रूह की ये ख़्वाहिश‌,ये दास्तान हसीं हो जाती,
हसरत का पैमाना छलकता, ये आँख भी नम हो जाती,

फिर सोचता हूँ कभी, ये कौन सा मुकाम आ गया हूँ मैं,
समझा मैं अदा,न समझ पाया मौसम ने करवट बदली है,

ज़िन्दगी की कसमसाहट में रोज़ जीते रोज़ मरते हैं हम,
रब की रज़ा थी ये तो, ये फरमान क्यूँ ना समझ पाए हम,

एक शाद मसरूर एहसास का रूबाब महसूस करता हूँ,
अरविंद शुकराना कर लूँ मैं बारम्बार इस रब की रज़ा को I

-✍️ Arvind Akv