जिस्म जो तिरंगे में लिपटे घर आते हैं।
मिट जाते हैं निशान पैरों के, लहरों से
पल भर ही समेटती है रेत खयालों को
अमर तो किस्से हो जाते हैं उन वीरों के
जिनके खून ने रंगा है पहाड़ों को
कुछ चीख कर, चिल्ला कर, कुछ बेहका कर
धर्म के नाम पर अधर्म की दीवार बनाते हैं
पर हमारे जवान भारत मां के लिए
हंस कर तिरंगे में लिपट आते हैं
अज्ञानी तो मंदिर-मस्ज़िद में ही लड़ जाते हैं
अज्ञान तक ही वह सिमटे रह पाते हैं
पर यह...
पल भर ही समेटती है रेत खयालों को
अमर तो किस्से हो जाते हैं उन वीरों के
जिनके खून ने रंगा है पहाड़ों को
कुछ चीख कर, चिल्ला कर, कुछ बेहका कर
धर्म के नाम पर अधर्म की दीवार बनाते हैं
पर हमारे जवान भारत मां के लिए
हंस कर तिरंगे में लिपट आते हैं
अज्ञानी तो मंदिर-मस्ज़िद में ही लड़ जाते हैं
अज्ञान तक ही वह सिमटे रह पाते हैं
पर यह...