...

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"मौत का क्या भरोसा"
मौत का क्या भरोसा कब आ जाए,
क्या पता अपनी या फिर अपनों की आ जाए|
खुश होकर हर पल थोड़ा अपने लिए और थोड़ा अपनों के लिए जियो,
मजबूत होकर थोड़ा दुख का भी घूंट पियो|
कोई भी अपना दुखी ना होने पाए,
चाहे इसके लिए कितने ही प्रयास क्यों ना करने पड़ जाएँ |
किसी की ज़िन्दगी छोटी है, किसी की बड़ी है,
परन्तु ये ना भूलो कि मौत सामने सबकी खड़ी है|
मौत का क्या भरोसा कब आ जाए,
क्या पता अपनी या फिर अपनों कि आ जाए |
जिन अपनों से रूठे हो तुम, उनके लिए दिल के दरवाज़े एक बार फिर से खोल लो,
कुछ को माफ़ कर दो, कुछ से माफ़ी मांग लो|
मौत का क्या भरोसा कब आ जाए,
क्या पता अपनी या फिर अपनों की आ जाए |
जिन बातों की गाँठ बाँध कर तुम बैठे हो,
हो सकता है आपके अपने आपसे बात करने के इंतज़ार में खड़े हों |
जो चले गए वो अब कभी वापस नहीं आएंगे,
फिर कभी आप उनसे नहीं मिल पाएंगे|
मौत का क्या भरोसा कब आ जाए,
क्या पता अपनी या फिर अपनों की आ जाए |
© Varsha Kanwar