...

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शुद्ध प्रति
चाहती तो चाँद
मैं अवश्य हथेली
में भी भर लेती
और सहलाती उसे
उन पक्तियों की तरह
तुमने उस रात
मेरी चौखट पर खटखटाई थी
पर तुम्हारी आज
देर तक प्रतीक्षा में
उन्हें गुनगुनाते हुए भी
मेरी उंगलियों ने उन्हें
अभी अभी
काव्य रूप दे दिया है
तुम्हारी शरारती योजक स्मृतियों ने
धीमें गुलाबी रेखांकन से
एक सुदूर पूर्ण विराम
तय किया है
कुछ छूटा सा या अनकहा
कभी हंसपदो को
या लोप चिह्नों को
जोड़ रहा है
और सरकते अनगिनत
अल्पविरामों से
धड़कनो की लय दौड़ रहा है
उपविरामो ,
थको नहीं
एक दीर्घ उच्चारण
अभी बाकी है
ये काव्य आज की
कच्ची नक़ल है
कल अवश्य आना
तुमसे शुद्ध प्रति
अभी बाकी है


© Ninad