...

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हमें बॉस चाहिए, हमें सुभाष चाहिए...
आंख वाले अंधे आंखें मूंद कर बैठे हैं,
तभी तो वह टोपी वाले, कोना ढूंढ के बैठे हैं...
अगर तुम भी चुप रहे तो कौन बोलेगा...
तराजू हाथ में न्याय का लिए कौन तोलेगा...
तब लगता है कि फिर वही जज्बा
आज चाहिए...
हमें बॉस चाहिए, हमें सुभाष चाहिए...

आजादी के बाद मेरे घर के अंग्रेजों ने मेरे ही घर को लूटा है...
अहिंसा के बापू हो या क्रांति के सुभाष, जैसे सब का सपना टूटा है...
आज... आजादी का सिहासन देखो तुम्हारे चरणों में पड़ा हुआ...
मत भूलो... बलिदानों के लहू को पीकर मेरा भारत बढ़ा हुआ...
देश के खातिर मर मिटने का फिर वही एहसास चाहिए...
हमें बॉस चाहिए, हमें सुभाष...