कान्हा है अपना
कोई नहीं अपना
सुदामा रह रह पुकारे
जोगी बन कान्हा आए
ऐसे क्यों कहना
जब कान्हा है अपना
हल पल इनके ही साथ रहे
मोर मुकुट छवि न्यारी
देखो मुरली मनोहर के आगमन की
हो रही तैयारी
राह निहारे गोकुल की गलियाँ
श्याम निकला मेरा छलिया
कोई होता अपना
कैसा देखा तुमने ये सपना
जब कान्हा हैं तुम्हारा अपना
सत्मार्ग पे तुम्हे चलाएँ
फिर भी तुम कहते कोई होता अपना
बतिया सारी सच्ची जोगी
फिर क्यों सुदामा तू कहे
कोई नहीं अपना
नटखट कान्हा वन...
सुदामा रह रह पुकारे
जोगी बन कान्हा आए
ऐसे क्यों कहना
जब कान्हा है अपना
हल पल इनके ही साथ रहे
मोर मुकुट छवि न्यारी
देखो मुरली मनोहर के आगमन की
हो रही तैयारी
राह निहारे गोकुल की गलियाँ
श्याम निकला मेरा छलिया
कोई होता अपना
कैसा देखा तुमने ये सपना
जब कान्हा हैं तुम्हारा अपना
सत्मार्ग पे तुम्हे चलाएँ
फिर भी तुम कहते कोई होता अपना
बतिया सारी सच्ची जोगी
फिर क्यों सुदामा तू कहे
कोई नहीं अपना
नटखट कान्हा वन...