सोचा न था...
सोचा न था ये लम्हा भी कभी आयेगा
जो पहली दफा हुआ
बहुत बुरा हुआ
उसके बाद कभी मोहब्बत दुबारा न हुआ
सीख ऐसी मिली जिसे अपनाने में अरसा बीत गया
अब चुप रहूं या कह दूं
जो एहसास है बयां करूं
या सीने में दफ्न रहने दूं
जो मेरे तरफ़ कदम बढ़ रहे
उनसे अपना रुख़ मोड़ लूं
या जिंदगी में मोहब्बत को दोबारा ओढ़ लूं
यूं तो मोहब्बत पर ऐतबार नहीं
चाहती मैं...
जो पहली दफा हुआ
बहुत बुरा हुआ
उसके बाद कभी मोहब्बत दुबारा न हुआ
सीख ऐसी मिली जिसे अपनाने में अरसा बीत गया
अब चुप रहूं या कह दूं
जो एहसास है बयां करूं
या सीने में दफ्न रहने दूं
जो मेरे तरफ़ कदम बढ़ रहे
उनसे अपना रुख़ मोड़ लूं
या जिंदगी में मोहब्बत को दोबारा ओढ़ लूं
यूं तो मोहब्बत पर ऐतबार नहीं
चाहती मैं...