...

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मेला... 🍂🍂🌿
मेले की तरफ देखते ही,
याद बचपन की आ गई,
रंग उन रंगीले गुब्बारों का जब भा गया,
आगे जो बढ़े तो,
मन मतवाला ख़ुशनुमा खिलौनों पर आ गया,
जब खींचकर माँ का पल्लू,
अपनी फरमाइशें बतायी ,
बचपन की सारी अठखेलियों दिखाई,
बहुत समझाने पर मैं समझ पायी,
खिलौने तो टूट जाते हैं,
गुब्बारों की भी रंगत बस कुछ ही पल की,
मार लिया मन जब ये सुन पायी,
अच्छे बच्चे जिद नहीं करते,
माँ - बाबा का कहना सुनते,
बनकर फिर अच्छे बच्चे,
फिर से घर को वापस लौटे...
आज फिर, मेले को देखा,
वही गुब्बारे, वही खिलौने,
वही जलेबी, वही मिठाई,
पर वो न फिर मन को भाया,
न ही मेरा जी ललचाया,
अहा! वो प्यारा बचपन मेरा,
मेले में फिर इसको पाया,
मेले को देखते ही,
याद वो प्यारा बचपन आया...
© Jyoti Kanaujiya