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अजी,, खुद से भी तो इश्क़ किया कीजिए
माना कि रहती हो घर की चारदीवारी में तुम
कभी खुले आसमाँ का भी मजा लीजिए,,,

क्यूँ लिपटी हुई हो पुराने लिबासों में तुम,,
कभी नये फैशन को भी तो आजमा लीजिए,,

कभी इसकी फिकर कभी उसकी फिकर
अजी,,, खुद की फिकर भी किया कीजिए,,,

रोज यूँ ही खाती पीती हो दौड़ते भागते,,
कभी फुर्सत में बैठकर तो खा लीजिए,,

क्यूँ रोज बांधकर "बाल " रहती हो तुम,,
जरा स्टाइल बदलती ,,रहा कीजिए,,

बच्चे जवान है ,,,,,छोड़कर ये दलीलें,, तुम
पुराने दिनों को,,,, थोड़ा लौटा लीजिए,,

छोड़कर ये रोज का बोरिंग सा नहाना
कभी पतिदेव को भी शाॅवर में बुला लीजिए,,

अगर ,, तुमको लगता है ये अटपटा,, तो फिर
छत पर बारिश में ही साथ नहा लीजिए,,,

क्यूँ भरोसे में रहती हो बाई,,,के तुम
कभी खुद भी पसीना,,, बहा लीजिए,,
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