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अपराध
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
तुं भी पाप बोध से दबी है और में भी
फिर भी हम हमारे रिस्ते की डोर थामे है
हमारा रिस्ता ही कुछ ऐसा बन गया है
भुल कर भी भुलना चाहे तो भुल नहीं पाते है
पता हे तुम्हे और मुझे भी तो सब पता है
क्या होना हे अंजाम हमें सब पता है
फिर भी क्यों हम खिंचे चले आते है
क्युं एक दुसरे के बिना हम रह नहीं पाते है
क्युं तुमसे बातें करने का मन करता है
क्युं तुम्हारे बिना कुछ अच्छा नहीं लगता है
क्युं मेरी जिंदगी में तुम इतनी घुल गई हो
चाहकर भी हम दोनो अलग हो नहीं पाते है
कभी कभी तुम्हारा मन विचलित लगता है
तुमें विचलित देख में भी तो होने लगता हुं
तुम कहती हो क्या ये रिस्ता हमारा सही है
या हम जो कर रहे है वो है पाप या अपराध
पता नहीं क्या जवाब दूं इस प्रश्न का तेरे
प्रेम करता हुं बस यही मन में आता है मेरे
हो सकता है ये पाप हो या हो अपराध
पर तेरी खुशी में मेरी खुशी है यही हे विश्वास
हां हो सकता है मेरा प्यार कुछ अलग है
दुनियां के नजरों में शायद हो सकता है पाप
पर तुम्हें और मुझे पता है ये कितना है पाक
इस अपराध बोध को तुम भुल जाओ
और जब तक साथ हो खुशी से जिओ
क्या सही क्या गलत यह नियती पर छोड दो
और अपने अपराध बोध से मुक्ती पाओ ।