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अपराध
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
तुं भी पाप बोध से दबी है और में भी
फिर भी हम हमारे रिस्ते की डोर थामे है
हमारा रिस्ता ही कुछ ऐसा बन गया है
भुल कर भी भुलना चाहे तो भुल नहीं पाते है
पता हे तुम्हे और मुझे भी तो सब पता है
क्या होना हे अंजाम हमें सब पता है
फिर भी क्यों हम खिंचे चले आते है
क्युं एक दुसरे के बिना हम रह नहीं पाते है
क्युं तुमसे बातें करने का मन करता है
क्युं...