...

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जतन #MERAISHQ
क्यों बैठी हो यूँ सिकुड़े,
पाँवो में अपने हाथ समेटे,
और अपने अंक* में यह (*गोद)
तीन प्रहर की रात समेटे।

बीत गए कितने ही दिवस,
कि चाँदनी मुस्काई है,
क्यों पूर्णिमा से चेहरे पर
रात अमावस छायी है।

आज व्योम* का सूनापन है,(*आकाश)
अट्टाहस कर बोल रहा,
आज कदंब की डाली पर
झूला एकाकी डोल रहा।

एक दृष्टि पाने को तुम्हारी,
बालक से हम तरस गए,
एक स्पर्श पाने को तुम्हारा
अम्बर से घन सा बरस गए।

तुम चुप हो तो सरिताओं का
कलकल भी झूठा लगता है,
तुम चुप हो तो पक्षी दल का
हलचल भी झूठा लगता है।

तुम चुप हो तो लगता है जैसे
फूल झरे मधुमासों में,
तुम चुप हो तो लगता है जैसे
श्वास नही हो श्वासों में ।

तुम चुप हो तो ऐसा लगता है
आठों पहर नही हो,
तुम चुप हो तो ऐसा लगता है
हवाएं ठहर गयी हों।

कुछ तो बोलो डाँटो मुझको
मेरे कान मरोड़ो,
ऐसे न पर चुप बैठो तुम
मेरा हृदय न तोड़ो।

मैंने लिखे पत्रों में सारे
प्रीत तुम्हारे नाम किये,
रह गए अधूरे जो अब तक
वो गीत तुम्हारे नाम किये।

अब लो करता हूँ नाम तुम्हारे
अपनी जान भी जाओ,
कब तक यूँ रूठी बैठोगी
अब तो मान भी जाओ।

#MERAISHQ

© Rishabh