...

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आग़ाज़....
चलो आज कुछ
अनसुने अनकहे
जज़्बात लिखती हूँ
उस सहमी सी दबी आवाज़ की
आवाज़ लिखती हूँ

कसमसाई सी
भरभराई सी
चरमराई सी
हर वो बात लिखती हूँ
चलो आज उस अहसास का
हर राज़ लिखती हूँ

कल की आई वो लड़की
भूलभुलैया में भुलाई वो लड़की
नए रिश्तों की
कुछ खटास
कुछ मिठास में
चुनवाई गई वो अशर्फ़ी पर
कोई किताब लिखती हूँ
चलो आज सीने में दफ़न उसके सपनों की
कटाक्ष लिखती हूँ

कुढन उसकी
गलन उसकी
तपन उसकी
जलन उसकी
उसके ख़ुद के अस्तित्व से
हो रही जुदाई के
विवाद लिखती हूँ
चलो आज बिलखती उसकी अंतरात्मा की
मैं साक्ष लिखती हूँ

खड़ी देहरी दहलीज़ पर
जाए बाहर कि भीतर
कैद एक तरफ़
अगली तरफ़ आसमां की
उच्छास लिखती हूँ
चलो आज उसके मौन को
मिल जाएगी आवाज़
इसलिए नए साज़ लिखती हूँ
छू लेगी अब वो आकाश
स्याह के बाद प्रस्फुटीत होगा
नव प्रकाश
उसके नव जीवन का
चलो मैं सुगम आग़ाज़ आज लिखती हूँ.....






© bindu