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रात एक किताब
रात है एक किताब,
पन्ने जिसमें है बेहिसाब।
कभी आते हैं नए किरदार,
कभी जगते पुराने जज़्बात।
कभी जिक्र हसीन लम्हों का होता,
कभी भर जाते खट्टे अहसास।
कहीं संघर्ष से ये भर जाते हैं,
कभी भरकर भी खाली रह जाते।
कहीं झलकती कामयाबी इनमें,
कहीं उदासी विफलता की है।
कभी दिख जाते हैं प्रेम प्रसंग,
कहीं पीड़ा जुदाई की है।
कभी किरदार न कोई मिलता है,
तन्हाई सी भर जाती है।
जुड़ता हर रोज एक पन्ना,
किताब ये बनती जाती है।
© Joginder Thakur
पन्ने जिसमें है बेहिसाब।
कभी आते हैं नए किरदार,
कभी जगते पुराने जज़्बात।
कभी जिक्र हसीन लम्हों का होता,
कभी भर जाते खट्टे अहसास।
कहीं संघर्ष से ये भर जाते हैं,
कभी भरकर भी खाली रह जाते।
कहीं झलकती कामयाबी इनमें,
कहीं उदासी विफलता की है।
कभी दिख जाते हैं प्रेम प्रसंग,
कहीं पीड़ा जुदाई की है।
कभी किरदार न कोई मिलता है,
तन्हाई सी भर जाती है।
जुड़ता हर रोज एक पन्ना,
किताब ये बनती जाती है।
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